Friday 13 December 2013

                लीक से हटकर

                                    मिथलेश शरण चौबे             

              भले ही संख्या कुछ कम रह गयी पर दिल्ली ने सचमुच दिल जीत लिया|धर्म जाति भाषा क्षेत्रीयता जैसे बेमानी और संकीर्ण दायरों में संगठित रहने को अभिशप्त मतदाताओं ने सारे लबादों को उतार फेंक अपने समय की सच्चाई से पूरी निपटता से जूझने का निर्णायक यत्न किया है|सत्ता शक्ति धन प्रबंधन परिवार मुखौटे विकास बयान प्रलोभन सब के सब धरे रह गए|अतीत की परिणति में तब्दील न हो सकीं जिन व्यापक सक्रिय चेष्टाओं का हम अफ़सोस मनाते आये हैं उनसे एक बार उबरने का गौरवमय समय दिल्ली के मतदाताओं ने दिया है| बार-बार गलत समझे जाने तथा आलोचकों के तीक्ष्ण प्रहारों के बावजूद राजनीति के दरिया में पहली बार डूब रहे लोगों ने नेक नीयत के आत्मबल पर पराक्रम के साथ तैरने और लगभग पार लगने का उल्लेखनीय कर्म साकार किया है|
           यह सब एक ऐसे समय में घटित हुआ जिसमें हम 'कुछ भी नहीं होगा','सब कुछ इसी तरह चलेगा'के नियतिवाद से आक्रान्त हो चुके हैं|धन,शक्ति,खौफ,षड़यंत्र,गठजोड़ के सहारे दूषित हो चुकी राजनीति चंद लोगों की परस्पर अदला-बदली का खेल बन चुकी है|कहने के लिए पढ़े-लिखे और समझदार होने के बावजूद हम नित नई संकीर्णताओं में बंधते चले जा रहे हैं| सत्ता पाने और बचाने के ही काम में जुटी पार्टियों को विज्ञापन,घोषणा पत्र और सभाओं में दिए जाने वाले भाषणों के अलावा आम मनुष्य से कोई मतलब नहीं रहा|पूंजीपतियों-अपराधियों के कन्धों पर अपने अस्तित्व को टिकाये पार्टियों के जरूरी कर्त्तव्य उनके हितों का संरक्षण और उन्हें  दंड से बचाना ही रह गया है|
           एक ऐसे समय में जब एक राज्य का मुख्यमंत्री पुनः सत्ता में आना अपना एकमात्र लक्ष्य मानता है|गांधी के देश में हिंसा को सीढ़ियों की तरह इस्तेमाल कर एक मुख्यमंत्री देश का प्रमुख बनना चाहता है|जाति और धर्म की घोषित खेमेबाजी में लगे एक नेताजी दंगों से निपटने में नहीं खुद के प्रधानमन्त्री बनने की कवायद में संलग्न हैं|किसी ने जानवरों के भोजन से स्वयं को तृप्त किया है तो किसी ने संघर्ष से उतरकर  स्मरणीय बनने की चाह में सरकारी खजाने को लुटाया है|दस बरस सत्ता में रहकर अपने राज्य को बदहाल कर कोई अनर्गल प्रलापों से राजनीति को और भी पतित करने में तत्पर है|
           एक ऐसे समय में जब देश में वंचितों-शोषितों के लिए चल रहे अनेक जनांदोलनों को कुचलने की भरसक कोशिशें की जातीं हैं| संसद में सड़क पर उतरे हुए लोगों का उपहास किया जाता है|विस्थापितों की सूनी पथराई आँखों में महीन सी झिलमिलाती जीवनाकांक्षा को पढ़ने और बचाने में वर्षों से लगी एक स्त्री की आवाज अनसुनी की जाती है|अपने वेतन-भत्तों को बढ़ाने में एकस्वर हो जाती धवनियों में तेरह बरस से एक बेतुके और निरीह लोगों के लिए जघन्य क़ानून के खिलाफ भूखी-प्यासी पूर्वोत्तर की युवती को बिसरा दिया जाता है| आत्महत्या करते किसान अलक्षित रह जाते हैं,स्त्रियों के शोषण पर सिर्फ बहस हुआ करती है,हजारों मनुष्य अब तक सिर पर मैला ढोते हैं,योजनाओं से अनजान कुपोषित बच्चों की संख्या लाखों में है|अघोषित सामंतवाद आज तक क्रियाशील है,अल्पसंख्यकों को सिर्फ वोट समझा जाता है,असंख्य गरीब और दलित हाशिये का हिस्सा हैं|                
                दिल्ली के मतदाताओं ने बटन दबाकर अंगुली में निशान लगवाने को जवाबदेही से लेते हुए  एक बड़ी जड़ता को तोड़ने का साहसिक कर्म किया है|दबाव व प्रलोभन के बिना जनता द्वारा साधारण हैसियत के अनेक प्रतिनिधि चुने जाना क्या हमारे समय की एक असाधारण घटना नहीं है!क्या इसे हम राजनीति में लघुमानव की प्रतिष्ठा का समय नहीं कहेंगे!यह सामंतवाद परिवारवाद धन शक्ति प्रभुत्व के तिलिस्म का एकदम से भरभरा जाना है|आज की नयी पीढ़ी को लोहिया और जेपी को नजदीक से समझने का अवसर भी मिला है|नियतिवाद से ग्रस्त पूरे देश की बहुसंख्यक जनता को एक कौंध की तरह उम्मीद मिलेगी जिसके सहारे यदि उसने समयानुकूल सही,साहसिक और परिवर्तनकारी निर्णय लिए तो समय का ऊँट जनता की करवट ही बैठेगा|स्वयं कुछ सार्थक नहीं करनेवालों की एक व्यापक आबादी ऐसी भी है जो दूसरों की सक्रियता की निंदा व  अपने अनुरूप काम करने की सलाह में ज्यादा रूचि रखती है|यदि हमें सोचने की स्वतंत्रता मिली है तो क्यों न हम एक संभावनामय भविष्य के बारे में विचार करें|सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पंक्तियाँ याद आ रही हैं-'लीक पर वे चलें जिनके/चरण दुर्बल और हारे हैं/हमें तो जो हमारी यात्रा से बने/ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं' |