Monday 26 May 2014





राजनीति के केजरीवालों का समय नहीं यह ?


                            मिथलेश शरण चौबे


            भारत वह स्वतंत्र राष्ट्र है जो अपनी स्वतंत्रता के सबसे बड़े योद्धा और अहिंसा के पुजारी को एक बरस भी स्वतंत्र राष्ट्र में सुरक्षित नहीं रख सका |आज वही देश गांधी के सबसे अचूक अस्त्रों के सहारे जनसाधारण की हैसियत को प्रतिष्ठित करने में लोगों को संशयग्रस्त बना रहा है |देश की दोनों बड़ी राजनैतिक पार्टियों की गतिविधियों की अनेक समानताओं में से एक यह भी है कि वे जी जान से यह कोशिश करती हैं की राजनीति उनके खेत की मूली ही बनी रहे उसे परिवर्तन की वह गंध न लगे कि फिर उनका अस्तित्व ही दाव पर लग जाए |
            आम आदमी पार्टी ने उनचास दिन की अपनी दिल्ली सरकार में बिजली के आडिट,पानी की उपलब्धता,दैनिक वेतन भोगियों के नियमितीकरण की पहल,ऑटो चालकों के लाइसेंस,हफ़्ता वसूली व पुलिसिया आतंक पर नियंत्रण तथा मुकेश अम्बानी पर एफ आई आर करके जो सक्रिय व जनहितैषी सरकार होने का साक्ष्य प्रस्तुत किया था उसे पल भर में विस्मृत नहीं किया जा सकता| जनता से किये सबसे बड़े वादे स्वराजके लिए नैतिकता के नाते शासन छोड़ देने जैसी नजीर भी इन दिनों अकल्पनीय है| मध्य प्रदेश,राजस्थान के मुख्यमंत्री से लेकर राहुल गांधी  तक को उस शैली के किंचित अनुकरण की ओर मुड़ना पड़ा जिसे लंबे समय से राजनीति ने पूरी तरह भुला दिया था |देश भर के राजनेताओं में साधारण का मुहावरा असर करने लगा है और सत्ताएं यह समझ चुकी हैं कि इस अस्त्र के प्रदर्शन बिना अब गुजारा संभव नहीं|अपने पिछले एक वर्षीय राजनैतिक समय में लोगों को जागरूक और प्रश्नाकुल होने का जो सक्षम अहसास दिलाने की कोशिश की , राजनैतिक पार्टियों को निजी उन्नति के अलावा जनहितैषी मार्गों को भले ही दिखाने के लिए अपनाना पड़ा,क्या इसे अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी की सफलता की तरह दर्ज नहीं किया जाना चाहिए ? राजनीति में उन्होंने जो कर दिया वह सचमुच अत्यंत उल्लेखनीय है| तमाम पार्टियों की सत्ताओं से उपकृत लोगों की एक बड़ी लंबी सूची है ,ये लोग ऐसे अवसरों पर बयानों-वक्तव्यों-आलेखों के माध्यम से अपनी कृतज्ञता का ज्ञापन करते हैं और इन पार्टियों को खतरा लगते लोगों को संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ घोषित कर अराजकतावादी साबित करने में लग जाते हैं | आगे उपकृत होने की कतार में इन दिनों बहुत लोग नजर आ रहे हैं|
           रोज-रोज जैसी व्याख्याएं की जा रही हैं उनसे अलग उस सच को पनपते हुए देखा जा सकता है जो पारंपरिक राजनीति को बदलने के लिए किसी भी कीमत पर डटा हुआ है| मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने अस्तित्व को दाव पर लगाकर तथा लगातार गलत साबित किये जाने के जोखिम के बावजूद अपनी प्रतिबद्धताओं के लिए लड़ने का पराक्रम केजरीवाल के अलावा देश में और कौन कर रहा है? सादगीपूर्वक शासन चलाते कुछ अन्य नेताओं का उल्लेख भी उनकी पार्टियों ने सिर्फ दिखावटी रूप से ही किया है | नितिन गडकरी पर भ्रष्ट होने के  आरोप की प्रतिक्रिया में मानहानि के मुद्दे पर जमानत लेना या नहीं लेना अरविन्द केजरीवाल का अपना निजी फैसला है और जिसका  आम आदमी पार्टी के लिए हित-अहित हो सकता है,लेकिन उसके बजाए बेमानी व्याख्याओं और नित नए आरोपों से केजरीवाल को अलंकृत करने वालों को जेल के जीवन के बारे में भी थोड़ा-सा विचार कर लेना चाहिए|यह भी जान लेना ठीक रहेगा कि जमानत नहीं लेने के मामले में गांधी की अडिगता ऐतिहासिक है| इस सबका यह मतलब नहीं कि आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के निर्णय और नीतियां आलोच्य  नहीं हो सकते या कि उनके तौर-तरीकों से असहमति जताने का एकमात्र मतलब किसी राजनैतिक पार्टी से संबद्ध होना ही है लेकिन उनकी बेमानी व अतिवादी व्याख्याओं में देश में घटित संभावना भरी एक बड़ी शुरुआत मात्र  उपहास का विषय बनती  नजर आने लगी है|कांग्रेस-भाजपा को तो ऐसा करना उनके नैतिक कर्त्तव्य की तरह है पर समझ से परे वे बहुतेरे लोग हैं जो एक सच्चे पाठ की जगह कुपाठ के आनंद में संलग्न हो रहे हैं|बेवसाईट,मेल,मोबाइल आदि के सुविधाजनक समय में जब हम किसी को भी सही-गलत के अपने विचार से अवगत करा सकते हैं, ऐसे में किसी नेक संभावना को लक्षित करने वालों के तेजी से नैराश्य की और फिसलते विचारों से किसी षड़यंत्र की बू ही तो आएगी |नयी सत्ता की ओर ललक भरी दृष्टि भी सही-गलत के फर्क का विवेक खो देती है|
          दरअसल वर्षों से राजनेताओं के मालिकपन को बर्दाश्त कर रहे लोगों के बीच साधारण की महिमा अनुकूल नहीं बैठती|हम चाहते हैं कि मुख्यमंत्री-सांसद-विधायक हमारे ऊपर राज करें व हम उनके हर सही-गलत की प्रशंसा करते जाए|वे इतने विशिष्ट बने रहें कि हमें अपने ऊपर के शासन का पता लगता रहे|हम शोषण को भुगतती रिआया रहें और वे हमारी तरफ से बेफिक्र राजा|उनके खिलाफ बोलने का हम सपना ही न देखें|अतीत में भी इस सपने को देखने की कोशिशें हुईं,आज लाखों लोग ऐसा सपना भी देख रहे हैं और उसे सच में बदलता हुआ भी| केजरीवाल उस स्वप्न का इस समय सबसे बड़ा सच हैं|