कविता के स्वप्न की तरह
स्वप्न में आती है एक कविता
कविता के स्वप्नों से बेखबर
ढेर सारी बची हुई
कामना को तिरोहित कर
साथ में लाई भाषा को
टटोलकर भाषा से बाहर
अपने को पाने के
यत्न की थकान पर
जैसे रोज आएगी नहीं
के साथ आना चाहती
रोज रोज
उसे घेर लेती
स्वप्न की बेतरतीब बनावटें
खारिज करती
बेमानी इच्छाएं
कविता होने से अपदस्थ करता
स्वप्न का बेरुखा अंदाज
लय गति
ठहराव बेचैनी को
फिर भी बचा लेती
रचने के यत्न को
रचने की आकांक्षा को
न रच पाने के क्षोभ को
आती तो है लेकिन
जल्द ही लौटती है
अधबनी कविता की तरह
स्वप्न में आई कविता
कविता के स्वप्न की तरह।
स्वप्न में आती है एक कविता
कविता के स्वप्नों से बेखबर
ढेर सारी बची हुई
कामना को तिरोहित कर
साथ में लाई भाषा को
टटोलकर भाषा से बाहर
अपने को पाने के
यत्न की थकान पर
जैसे रोज आएगी नहीं
के साथ आना चाहती
रोज रोज
उसे घेर लेती
स्वप्न की बेतरतीब बनावटें
खारिज करती
बेमानी इच्छाएं
कविता होने से अपदस्थ करता
स्वप्न का बेरुखा अंदाज
लय गति
ठहराव बेचैनी को
फिर भी बचा लेती
रचने के यत्न को
रचने की आकांक्षा को
न रच पाने के क्षोभ को
आती तो है लेकिन
जल्द ही लौटती है
अधबनी कविता की तरह
स्वप्न में आई कविता
कविता के स्वप्न की तरह।
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