Tuesday 16 July 2013

कविता के स्वप्न की तरह
स्वप्न में आती है एक कविता
कविता के स्वप्नों से बेखबर
ढेर सारी बची हुई
कामना को तिरोहित कर

साथ में लाई भाषा को
टटोलकर भाषा से बाहर
अपने को पाने के
यत्न की थकान पर
जैसे रोज आएगी नहीं
के साथ आना चाहती
रोज रोज

उसे घेर लेती
स्वप्न की बेतरतीब बनावटें
खारिज करती
बेमानी इच्छाएं
कविता होने से अपदस्थ करता
स्वप्न का बेरुखा अंदाज

लय गति
ठहराव बेचैनी को
फिर भी बचा लेती
रचने के यत्न को
रचने की आकांक्षा को
न रच पाने के क्षोभ को

आती तो है लेकिन
जल्द ही लौटती है
अधबनी कविता की तरह

स्वप्न में आई कविता
कविता के स्वप्न की तरह।

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