Monday 28 July 2014

विस्थापन का विकास





                 मिथलेश शरण चौबे
       कुछ लोगों की जिंदगी के भयावह संकटों से बहुतों की सुविधाओं के रास्ते बनते हैं|सुविधाओं का निर्णय लेनेवाले और लाभ पानेवाले अक्सर संकटग्रस्त लोगों को विस्मृत ही करते हैं|जैसे-तैसे चल रहे जीवन की गति अचानक उस समय एक नए चाक पर घूमने लगती है जब बिना वाजिब इन्तजाम के नियत स्थिति से ठेलने की कवायद की जाती है|अंधेरे को दूर करने,विकास के पथ पर चलने,संसार को अपनी तरक्की का ग्राफ ऊंचा दिखाने की बिना सुविचारित योजनाओं के हमारे देश में ऐसे निर्णय लिए जाते हैं जैसे कोई शत्रु विध्वंस का ही कोई नया व्यूह रच रहा हो|
      चौड़ी सड़कें,औद्योगिक संयंत्र आदि के लिए किसानों से उर्वर जमीन लेने की अनेक विसंगतियों के साथ ही बांधों की ऊंचाई बढ़ाने के तत्पर निर्णय भी हैरत में डालते हैं|अनेक पूरे-के-पूरे गांव-नगर निर्वासन की पीड़ा भोगने अभिशप्त होते हैं|हजारों मनुष्य,मुश्किल से निर्मित हुए उनके घर,स्कूल,अस्पताल,उपजाऊ जमीन,धार्मिक स्थल,जानवर और उनकी सुरक्षित जगहें,बेघर और समयानुकूल बने उनके ठौर-ठिकाने सब कुछ थोड़े से समय में ऊबे-महत्त्वाकांक्षी-असंवेदनशील लोगों द्वारा लिए निर्णयों की बलि चढ़ जाते हैं|
       चौथे खम्बे के बहुधा सत्तापरस्त समय में सुध लेने वाला कोई कहाँ नजर आ रहा है?वर्ष दो हजार में सुप्रीम कोर्ट ने बांध की ऊंचाई बढ़ाने से पहले उचित विस्थापन के लिए अपना सपष्ट मत जाहिर किया था|सरदार सरोवर बांध परियोजना से अपने सक्रिय होने के तत्काल प्रमाण की लाभाकांक्षा में वर्तमान प्रधानमन्त्री और परियोजना से सर्वाधिक लाभ पानेवाले राज्य गुजरात की मुख्यमंत्री न्यायालय की  इस जनहितैषी मंशा से बहुत  दूर हैं|अपने राज्य के लाभ की कीमत का तर्क इन्हें तो थोड़ा सहारा दे सकता है लेकिन बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बने मध्यप्रदेश के व्यापमं आक्रान्त मुख्यमंत्री की हौसलापस्त स्वीकृति कहीं बन्दर के हाथ में उस्तरे का माकूल उदाहरण ही न बन जाए|
      देश की पांचवी सबसे बड़ी नदी नर्मदा पर बने इस बांध की ऊंचाई लगभग सत्रह मीटर बढ़ा देने से बिजली और सिचाई का अधिकतम लाभ गुजरात को मिलेगा|महाराष्ट्र,राजस्थान भी पर्याप्त लाभप्रद स्थिति में रहेंगे| कुल प्रभावित 63 हजार परिवारों में  45 हजार अत्यंत कम लाभ की संभावना वाले मध्यप्रदेश के हैं|धार जिले के धरमपुरी कस्बे सहित आसपास के 193 गांव जलमग्न होने के कगार पर हैं|इन प्रभावितों में ज्यादातर आदिवासी,छौटे-मंझौले किसान व दुकानदार,मछुआरे व कुम्हार शामिल हैं|मनुष्यों को विस्थापित करने की तथाकथित योजनाओं में उनके सहयोग से घरेलू व उपयोगी जानवरों का तो किंचित विस्थापन हो सकेगा लेकिन पेड़-पौधे,उपजाऊ जमीन के अस्तित्व को नजरंदाज करना कैसे ठीक है?पर्यावरण क्षति के बचाव का कौन सा विस्थापन तरीका अपनाया जाएगा?
       बडवानी,अंजड,कुक्षी,मनावर,धरमपुरी में उठे विरोध के जनस्वर भी क्या जलमग्न हो जायेंगे?संघर्षरत क्षेत्रीय जनता,नर्मदा बचाव आंदोलन व उसकी वर्षों से विस्थापितों के हक में लड़ती आई नेत्री मेधा पाटकर यदि यह मांग करते हैं कि बिना उचित पुनर्वास के बांध की ऊंचाई नहीं बढ़ाना चाहिए,तो इसमें तथाकथित विकास के विरोध की बू कहां से आती है?वातानुकूलितों में बैठकर निर्णय लेनेवालों को वे हजारों बेघर मनुष्य दिखाई नहीं देते जिनका न राशन कार्ड होता है न कोई पहचान|कहां जायेंगे वे?
       मध्यप्रदेश के हरसूद के विस्थापन को मीडिया ने चिन्ता व जिम्मेदारी से उजागर किया था जिससे पता चलता है कि सत्ता,नौकरशाह और परिस्थिति के फायदे से उतपन्न दलाल किस तरह जनता को गुमराह कर सत्ता के निर्णयों का मूक अनुकर्ता बनाने की कवायद में लगे रहते हैं| सिर्फ मनुष्य के विकास और उसकी सुविधा के इन्तजाम करना दरअसल एकांगी विचार और मनुष्यता विरोधी मुहिम है|जानवर,पेड़-पौधे,उर्वर भूमि को नजरंदाज कर आप तथाकथित विकास की नांव कब तक चला पायेंगे?बांध की ऊंचाई और अन्य विकासजन्य वजहों के लिए विस्थापन प्रक्रिया की जल्दबाजी से किसी का विकास हो न हो,विस्थापन का जरूर विकास हो रहा है|
                                                                                                                    

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